प्रोफ़ेसर राजेश एस. गोखले, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में सचिव हैं। वर्तमान में, आप भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान आईसर पुणे से प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं। इससे पहले, आप नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी एनआईआई में कार्यरत थे। साथ ही, साढ़े सात साल तक आप सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी सीएसआईआर-आईजीआईबी के निदेशक भी रहे हैं।
अपने कार्यकाल के दौरान, आपने सीएसआईआर-आईजीआईबी के दक्षिण परिसर की स्थापना की, जहां आपने अलग-अलग प्रकार की जटिल बीमारियों को चित्रित करने पर केंद्रित ट्रांसलेशनल जीनोमिक्स अनुसंधान कार्यक्रमों में अंतःविषय पहल का नेतृत्व किया। डॉ. गोखले, भारतीय विज्ञान संस्थान IISc , बैंगलोर तथा स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, संयुक्त राज्य अमेरिका से एक रासायनिक जीवविज्ञानी के रूप में प्रशिक्षित हैं। आपका महत्वपूर्ण शोध योगदान नॉवेल मेटाबोलाइट्स तथा उनके मार्गों की खोज में है, जो कि मानव रोगों के पैथोफिज़ियोलॉजी को निर्धारित करते हैं। आपकी प्रयोगशाला के हालिया काम ने, संक्रामक रोगज़नक़ माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से दो नॉवेल मेटाबोलाइट्स की पहचान की है, जो कि जटिल संक्रमण प्रक्रिया शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। आपके समूह द्वारा ऑटोइम्यून बीमारी विटिलिगो की समझ में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आपके समूह के अध्ययनों ने नॉवेल चिकित्सीय रणनीतियों को विकसित करने के लिए चयापचय रिप्रोग्रामिंग और प्रतिरक्षा प्रणाली के बीच जटिल परस्पर क्रिया को स्पष्ट किया है, जो कि केवल लक्षणों के बजाय अंतर्निहित कारणों से निपट सकते हैं। आपकी प्रयोगशाला से वैज्ञानिक कार्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे नेचर, नेचर केमिकल बायोलॉजी, मॉलिक्यूलर सेल, द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज आदि में प्रकाशित हुए हैं। आपने 200 से अधिक छात्रों को मार्गदर्शन दिया है तथा लगभग 25 छात्रों ने आपके समूह से पीएचडी थीसिस पूरी की है। डॉ गोखले ने वर्ष 2010 में व्योम बायोसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड VYOME की सह-स्थापना की है, जो कि एक बायोफर्मासिटिकल कंपनी है, जिसका दायित्व त्वचाविज्ञान हेतु श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ दवाओं का विकास करना है। यह कंपनी वर्तमान में दवा प्रतिरोधी मुँहासे के लिए चरण IIb नैदानिक परीक्षण पूरा कर रही है और बाजार में ओटीसी उत्पादों को लॉन्च किया है। डॉ. गोखले यूके के वेलकम ट्रस्ट सीनियर रिसर्च फेलो तथा यूएसए के इंटरनेशनल एचएचएमआई फेलो रहे हैं। आपको इंफोसिस पुरस्कार, शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, राष्ट्रीय जैव विज्ञान पुरस्कार, जे सी बोस राष्ट्रीय फैलोशिप तथा आईआईटी बॉम्बे के विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से पुरुस्कृत किया गया है। आप तीन भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के फेलो भी हैं।
डॉ. जितेन्द्र कुमार ने इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ से जैव प्रौद्योगिकी विषय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। इसके पश्चात, वे इलिनोइस विश्वविद्यालय, शिकागो चले गए, जहां उन्होंने ल्यूकेमिया पर काम किया। उन्होंने अमेरिका के ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के फिशर कॉलेज ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री भी प्राप्त की है।
अमेरिका से लौटने के बाद, उन्होंने आईकेपी नॉलेज पार्क, हैदराबाद में लाइफ साइंस इनक्यूबेटर के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला, जहां उन्होंने इनक्यूबेटी कंपनियों को सक्रिय रूप से सलाह देने, प्रौद्योगिकियों के साथ टीम निर्माण के अभिनव मॉडल के माध्यम से उद्यमियों को जोड़ने, व्यावसायीकरण के उद्यमशीलता मॉडल बनाने हेतु सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं तथा विश्वविद्यालयों के साथ काम करना आदि क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया। पोषण, जैव ईंधन/जैव-ऊर्जा तथा फार्मा/स्वास्थ्य देखभाल में नवाचारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उन्होंने बैंगलोर बायोइनोवेशन सेंटर के निदेशक और प्रमुख के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। उन्होंने बैंगलोर में एक जीवंत जीवन विज्ञान नवाचार क्लस्टर निर्माण हेतु भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और कर्नाटक सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, बीटी तथा एस एंड टी विभाग के साथ मिलकर काम किया है। वह कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, मानव आनुवंशिकी केंद्र, मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ रीजनरेटिव मेडिसिन एमआईआरएम तथा बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान में अतिथि संकाय सदस्य भी हैं। वह विभिन्न केंद्रीय एवं राज्य सरकार समितियों के सदस्य हैं तथा जीवन विज्ञान में स्टार्टअप, नवाचार एवं उद्यमिता से संबंधित नीतिगत मामलों से संबन्धित सलाहकार हैं। वर्तमान में, वह जैव प्रौद्योगिकी पर सीआईआई की राष्ट्रीय समिति, एसोसिएशन ऑफ बायोटेक लेड एंटरप्राइजेज एबीएलई , कर्नाटक स्टार्ट-अप नीति के लिए समिति और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के तत्वावधान में भारत सरकार द्वारा समर्थित बैंगलोर इनोवेशन क्लस्टर के सदस्य हैं। वह जैव प्रौद्योगिकी नवाचार एवं उद्यमिता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशंसित विचारक एवं सलाहकार हैं। उन्हें भारत और कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करने हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया और नीदरलैंड में विभिन्न सम्मेलनों में एक वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया है। उन्होंने हजारों युवाओं को सफल जैव प्रौद्योगिकी उद्यम प्रारम्भ एवं निर्माण करने हेतु प्रेरित किया है। उन्हें जीवन विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार प्रबंधन में लगभग 20 वर्षों का अनुभव है। उनके पास लगभग 25 पीयर रिव्यूड प्रकाशन हैं एवं उनके परामर्श के अंतर्गत लगभग 45 उत्पादों का शुभारंभ किया गया है।
श्री विश्वजीत सहाय भारतीय रक्षा लेखा सेवा के १९९० बैच के हैं। सेंट स्टीफंस कॉलेज दिल्ली के पूर्व छात्र, उन्हें भारत सरकार में काम करने का विविध अनुभव है, जो पहले जूनियर के रूप में कार्य कर चुके हैं। भारी उद्योग विभाग में सचिव और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में निदेशक।
उन्होंने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, भारी इंजीनियरिंग निगम रांची, एक अनुसूची ए सीपीएसई, राष्ट्रीय मोटर वाहन परीक्षण अनुसंधान और विकास बुनियादी ढांचा परियोजना एनएटीआरआईपी के सीईओ और परियोजना निदेशक और फिल्म समारोह निदेशालय में निदेशक के पदों का अतिरिक्त प्रभार संभाला है। , दिल्ली। रक्षा लेखा विभाग के भीतर, उन्हें रक्षा मंत्रालय के अधिग्रहण विंग में वित्त प्रबंधक भूमि प्रणाली , रक्षा मंत्रालय में एक संवर्ग पद के रूप में काम करने का अनुभव है। उन्होंने रक्षा लेखा विभाग के कई क्षेत्रों और मुख्यालय संगठनों में भी काम किया है और रक्षा मंत्रालय, सेना और आयुध कारखानों के साथ मिलकर काम करने का अनुभव है।
सुश्री निधि श्रीवास्तव,इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया की फ़ैलो मेंबर हैं। साथ ही, आप दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ ग्रेड़ुएटहैं। इसके अलावा,नॉर्थ कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजास कॉलेज से पर्यावरण विज्ञान में ग्रेड़ुएशन भी किया है।
सुश्री निधि श्रीवास्तव,इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया की फ़ैलो मेंबर हैं। साथ ही, आप दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ ग्रेड़ुएटहैं। इसके अलावा,नॉर्थ कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजास कॉलेज से पर्यावरण विज्ञान में ग्रेड़ुएशन भी किया है। एक पेशेवर के रूप में, सुश्री निधि श्रीवास्तव के पास फाइनेंशियल प्लानिंग, बजटिंग, टैक्ससेशन, लेखा परीक्षा एवं निधि प्रबंधन जैसे विषयों में विषयगत विशेषज्ञता के साथ-साथ वित्त तथा लेखा के विभिन्न पहलुओं में 20 से अधिक वर्षों का अलग-अलग अनुभव है। साथ ही,सुश्री श्रीवास्तव ने कई उल्लेखनीय कंपनियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें एनटीसी लिमिटेड, नेफेड, डेलॉइट तथा अर्न्स्ट एंड यंग शामिल हैं।
डॉ. पेन्ना कृष्णा प्रशांति वर्तमान में हर्षिता हॉस्पिटल एंड बेस्ट डायबिटिक केयर सेंटर, तिरुपति, आंध्र प्रदेश में सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने वर्ष 1994 में श्री वेंकटेश्वर मेडिकल कॉलेज, तिरुपति से एमबीबीएस और वर्ष 2000 में कुरनूल मेडिकल कॉलेज, कुरनूल से एमडी जनरल मेडिसिन पूरा किया।
वह आंध्र प्रदेश राज्य की एकमात्र महिला चिकित्सक हैं जो केवल दो दशकों में एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया एपीआई , रिसर्च सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया आरएसएसडीआई और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आईएमए में राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची हैं। आंध्र प्रदेश राज्य में IMA की महिला डॉक्टर विंग बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है और वर्तमान में वह उसकी सलाहकार समिति की सदस्य भी हैं। वर्तमान में वह नेशनल एपीआई क्रेडेंशियल्स कमेटी की सदस्य के साथ-साथ एपीआई के आंध्र प्रदेश चैप्टर की अध्यक्ष भी हैं। वह RSSDI के आंध्र प्रदेश चैप्टर की गवर्निंग काउंसिल सदस्य हैं। वह इंडियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया, रिसर्च सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया, आईएमए एकेडमी ऑफ मेडिकल स्पेशलिटीज की फेलो थीं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला मधुमेह विशेषज्ञ पुरस्कार, अकादमिक उत्कृष्टता और सामुदायिक सेवाओं के लिए IMA अध्यक्ष प्रशंसा पुरस्कार, दिल्ली तेलुगु अकादमी से उगाधि पुरस्कार और उनकी सामुदायिक सेवाओं के लिए इसी प्रकार के असंख्य पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। वह एपीआई, आरएसएसडीआई, आईएमए, एंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंडियन थायराइड सोसाइटी, डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप इंडिया डीआईपीएसआई , डायबिटिक फुट सोसाइटी ऑफ इंडिया, न्यूट्रिशन सोसाइटी ऑफ इंडिया जैसे विभिन्न प्रतिष्ठित व्यावसायिक संगठनों की आजीवन सदस्य हैं। उन्होंने कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी के रूप में सेवा प्रदान की और बाद में निजी क्षेत्र में स्थानांतरित हो गई। अपनी शैक्षणिक योग्यता में वृद्धि की चाह और अनुसंधान हेतु वह डायबेटोलॉजी के क्षेत्र में फेलोशिप करने में सक्रिय रही हैं और डायबिटिक फुट रिसर्च इनिशिएटिव के साथ डायबिटिक फुट प्रॉब्लम्स पर सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। वह विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ मधुमेह में पोषण और मधुमेह में संक्रमण संबंधी शोध गतिविधियों में निरंतर सक्रिय एवं सम्मिलित हैं। कोविड महामारी के दौरान उन्होंने तिरुपति में जिला प्रशासन के साथ मिलकर हजारों रोगियों को कोविड देखभाल केंद्र और टेली मेडिसिन परामर्श प्रारम्भ करने का अनुकरणीय कार्य किया। कोविड की स्थिति में उनकी नि:स्वार्थ सेवाओं के लिए उन्हें कोविड वारियर अवार्ड के अतिरिक्त विभिन्न उपाधियों से सम्मानित किया गया है। उनका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को निवारक स्वास्थ्य देखभाल के साथ सशक्त बनाना और युवा अवस्था में ग़ैर-संचारी रोगों को रोकने के लिए हमारी पारंपरिक स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देना है।